त्योहारों पर रिश्तेदार मोड़ लेते हैं मुंह, लोभ क्या क्या न कराए: आरके मौर्य
चोर चोर मौसेरे भाई,पार कर चुके बेशर्मी की हदें, ऐसे लोगों को समाज में रहने का कोई हक नहीं

- ढखेरवा चौराहा खीरी
समाज को नई दिशा प्रदान करने तथा सुंदर के समाज बनाने के लिए न जाने कितने संगठन कितने कार्यक्रमों का आयोजन कराते हैं पर लोभी दंभी, मक्कार मूर्खो पर इसका कोई असर नहीं होता है। कारण वे ऐसा करने वाले अकेले नहीं होते हैं उनके जैसे बहुत सारे चापलूस टीम वाले कभी उनको अहसास ही नहीं होने देते कि वे गलत जा रहे हैं।
अगर किसी गांव में कुछ लोग खराब है तो इसके जिम्मेदार गांव के ही लोग हैं उनकी आंखों में गंदगी का ऐसा चस्मा लगा हुआ है कि वे गुड और गोबर में फर्क नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे बहुत सारे लोग समाज में मिलेंगे जो दो तराजू लिए घूम रहे होंगें, एक अपने खास लोगों के लिए, दूसरा गैरों के लिए। वे तुरंत तौलना शुरू कर देते है, उनको ये समझ में नहीं आ रहा कि वे कर क्या रहे हैं। सबको अच्छा समाज चाहिए, अपने बच्चो के सुंदर माहौल चाहिए, तो बनाओ न, रोका किसने है? दूसरो पर इसकी जिम्मेदारी डालकर भाग नहीं सकते। भागो, फिर पीढ़ियां बरबाद करने के दोषी आप ही बनोगे, आने वाली पीढ़ी माफ नहीं करेगी जैसे आप लोग अपने पूर्वजों में कमी निकालते हो।
कहीं कुछ गलत हो रहा है तो विरोध करो, अच्छा हो रहा तो प्रचार करो, तारीफ करो, उसका हौसला बढ़ाने का काम करो। समाज में सही गलत की रेखा खींचो, दूसरे की तरफ मुंह उठाकर मत देखो, खुद से ही शुरुवात करो।
मेरी पत्नी के घरवालों ने जो अशोभनीय और निंदनीय कार्य किया और आज 16 वर्ष गुजर जाने पर भी कर रहे हैं, उसके लिए उनको अहसास दिलाने के लिए समाज को सामने आना चाहिए था, समझाना चाहिए था , फिर भी न मानते तो समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए था, जैसा कि हमारे पूर्वज करते थे। वे भले ही पुरानी परंपरा के अनुसार चलते हो पर इस मामले में हमसे बहुत अच्छे थे।
इस मैटर में जिम्मेदार सिर्फ पत्नी के माता पिता भाई बहन ही नहीं है अपितु उनके गांव समाज, परिवार रिश्तेदार लोग भी हैं, क्योंकि उन लोगों ने हर कदम पर उनकी हां में हां मिलाई। रुपयों और झूठी शान के लिए बेटी बहन को त्याग देने वाले लोगों को घर में बैठकर खाने पीने वाले लोग उनका विरोध करेंगें, बिल्कुल नहीं करेंगे। वैसे ही जैसे महाभारत में दुर्योधन का विरोध किसी ने नहीं किया, फिर उन सब लालची लोगों के चक्कर में पूरा कुनबा खत्म हो गया। उस काल की पापी आत्माएं फिर जन्म लेकर इस पृथ्वी पर आ गई है। उन लोगों ने 2-2 रुपयों के लालच में अपनी मर्यादा खो दी है। जाने कैसे ये लोग ऐसे कसाइयों के घर पल्थी मारकर खाते हैं, फिर उनका झूठा गुणगान भी करते है, करे भी कैसे न क्योंकि दुबारा फिर खाना है। विरोध करेंगे तो संबंध बिगड़ जाएंगे तो जो 10-50 मिलते है वो भी चले जाएंगे।
मेरी पत्नी ने विवाह पूर्व जिन जिन का सम्मान किया उन सभी ने उसको चापलूसी के चक्कर में त्याग दिया। समाज अक्सर उनको त्याग देता है जिसको कुछ देना हो चाहे वो कितना भी अच्छा हो, उनको जबरदस्ती पकड़े रहता है जिससे कुछ मिलने की उम्मीद हो।
लोगो का ऐसा रिएक्शन है जैसे कुछ हुआ ही न हो, सब अपने में मस्त हैं।
अगर सुधरे नहीं तो भुगतना होगा।
हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।।
- संपादकीय
- आरके मौर्य प्रसार संपादक उ प्र