झारखण्ड

12 साल से पथरा गई आंखें , आशियाने के लिए और कितना इंतजार

12 साल से पथरा गई आंखें , आशियाने के लिए और कितना इंतजार

12 साल से पथरा गई आंखें , आशियाने के लिए और कितना इंतजार

(प्रसार संपादक शेखर गुप्ता)

रांची: कहते हैं इंसान को सबसे ज्यादा दुख तब होता है, जब उसका आशियाना कोई छीन लेता है। कुछ ऐसा ही रांची के इस्लामनगर में रहने वाले करीब 500 परिवारों के साथ हुआ। साल 2011 में अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत नगर निगम और जिला प्रशासने ने बुलडोजल चलाकर मकान ध्वस्त कर दिया। इस घटना के बाद पीड़ित परिवारों ने न्याय की गुहार लगाते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने पुनर्वास करने का आदेश दिया। लेकिन पीड़ित परिवारों को पिछले 12 सालों से आशियाना नहीं मिला है। स्थिति यह है कि घर के इंताजर में आंखें पथरा गई हैं और झोपड़ी में रहने को मजबूर है।

स्थानीय लोग कहते हैं कि साल 2011 का वह दिन जीवन का काला दिन था। नगर निगम और जिला प्रशासन की ओर से घर खाली करने का फरमान सुनाया गया और दो दिनों के भीतर बुलडोजर की मदद से घरों को तोड़ दिया गया। स्थानीय लोगों ने विरोध किया तो पुलिस की ओर से गोलियां चलाई गई। इस घटना में 2 लोगों की मौत भी हो गई थी।

घटना के बाद पीड़ित परिवार पूर्व राज्यसभा सांसद परिमल नाथवानी की मदद से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिनों के अंदर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट में जाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में मोहम्मद शकील ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने जिला प्रशासन और नगर निगम को आदेश दिया कि सभी बेघर हुए लोगों को उसी जगह पर घर बनाकर पुनर्वास कराना सुनिश्चित करें।

हाई कोर्ट ने निर्देश पर जिला प्रशासन ने 444 पीड़ित परिवारों को चिन्हित किया, जिन्हें 13 महीनों के भीतर घर मुहैया कराना था। लेकिन आज तक इन पीड़ित परिवारों को घर नहीं मिल सका है। इस्लाम नगर के सदर मोहम्मद सलाउद्दीन कहते हैं कि जिला प्रशासन ने 444 परिवारों को चिन्हित कर 13 महीने में घर मुहैया कराया का आश्वस्त दिया था। लेकिन करीब 12 साल हो गए और अब तक एक भी परिवार को घर नहीं मिला है। स्थानीय लोग और हाईकोर्ट की ओर से जिला प्रशासन और नगर निगम पर दबाव बनाया गया तो साल 2018 में 292 परिवार के लिए घर का निर्माण कार्य शुरू किया गया। लेकिन विवाद के कारण एक भी परिवार को शिफ्ट नहीं कराया जा सका है।

मिली जानकारी के अनुसार 444 परिवार को चिन्हित किया गया। लेकिन 292 परिवारों के लिए ही घर बनाया गया। इसको लेकर स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू किया और मांग की कि शत प्रतिशत पीड़ित परिवारों को घर मुहैया कराई जाए। लेकिन नगर निगम और जिला प्रशासन ने पीड़ित परिवारों की मांग पर ध्यान नहीं दिया। स्थानीय लोगों ने बताया कि 444 परिवारों ने अपना पहचान पत्र नगर निगम कार्यालय, वार्ड पार्षद कार्यालय और डीसी कार्यालय में जमा कराया है। लेकिन नगर निगम की ओर से कहा गया कि करीब 200 लोगों का ही विवरण आया है।

सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद अफरोज कहते हैं कि हाई कोर्ट ने 444 पीड़ित पारिवारों को घर मुहैया कराने का आदेश दिया था। इसकी सूची स्थानीय लोगों की ओर से हाई कोर्ट से लेकर नगर निगम कार्यालय तक में दी है। इसके बावजूद 200 परिवारों के लिए ही घर बनाया जा रहा है। इसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया।

292 परिवारों के लिए बन रहे घरों का जायजा लिया तो पता चला कि बिल्डिंग बना रही कंपनी को भी आवंटित जारी का भुगतान नहीं किया गया। इससे कंपनी निर्धारित समय सीमा में काम पूरा नहीं की। डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने बताया कि 444 परिवारों को मकान मिले। इसको लेकर फंड आवंटित किया गया है। फंड आवंटित होने के बाद निगम की ओर से पहचान पत्र जमा करने के लिए प्रचार-प्रसार किया। लेकिन अभी तक करीब 250 परिवारों ही पहचान पत्र जमा हो सका है। इससे निगम को यह दिक्कत हो रही है।

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