पिछले साल के गन्ना मूल्य भुगतान न होने से भुखमरी के कगार पर पहुंचा किसान
उत्तर प्रदेश जनपद लखीमपुर में बजाज ग्रुप की गन्ना फैक्ट्रियों के द्वारा अभी तक भुगतान नहीं किए जाने से लखीमपुर के गन्ना किसानों का हाल बहुत ही दयनीय होता जा रहा है। एक तो भयानक बाढ़ का दंश झेल कर किसान उबर नही पाया हैं।दूसरी तरफ किसान गन्ना मूल्य भुगतान ना होना अब लखीमपुर के किसानों के लिए बना है बहुत बड़ा सर दर्द सरकार में बैठे
पिछले साल के गन्ना मूल्य भुगतान न होने से भुखमरी के कगार पर पहुंचा किसान
उत्तर प्रदेश जनपद लखीमपुर में बजाज ग्रुप की गन्ना फैक्ट्रियों के द्वारा अभी तक भुगतान नहीं किए जाने से लखीमपुर के गन्ना किसानों का हाल बहुत ही दयनीय होता जा रहा है। एक तो भयानक बाढ़ का दंश झेल कर किसान उबर नही पाया हैं।दूसरी तरफ किसान गन्ना मूल्य भुगतान ना होना अब लखीमपुर के किसानों के लिए बना है बहुत बड़ा सर दर्द सरकार में बैठे
जनप्रतिनिधियों ने किसानों की समस्याओं पर चर्चा ना करके सरकार के कार्यों पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने गोला के उपचुनाव में रैलियों के दौरान अपने भाषण में कहा था कि मिल चालू होने से पहले सभी किसानो को गन्ने का भुगतान कर दिया जाएगा परंतु भुगतान नहीं हुआ क्या किसान को इस वर्ष भी भुगतान नहीं होगा? यह सवाल अब किसानों के जेहन में गूंज रहा है।
बजाज ग्रुप की सभी चीनी मिलो द्वारा किसानो को अबतक गन्ने का सम्पूर्ण भुगतान नहीं किया गया है जबकि विगत वर्ष में चीनी मिल आरंभ/चालू होने से पहले य़ह समझोता हुआ था कि किसानो को पूर्ण भुगतान कर दिया जाएगा परंतु अबतक आंशिक भुगतान ही किया गया है सभी उच्च स्तरीय अधिकारियों द्वारा किसानो को समझौते के नाम पर ठगा गया है अब कोई भी किसान के हित में बोलने वाला नहीं है आखिर क्यों?कब तक किसानो के साथ धोखा होगा ? किसी नेता द्वारा और न ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानो के भुगतान के लिए बजाज मिल को कहा गया हो ? बजाज चीनी मिल के खिलाफ पिछले साल मुक़दमा पंजीकृत किया गया था परंतु क्या अबतक गिरफ़्तारी हुई? क्या सरकार से बजाज चीनी मिल शक्तिशाली है ? जो सरकार किसानो को गन्ने का भुगतान नहीं करा सकती? बजाज ग्रुप की जिले में तीन चीनी मिल है
किसान अपनी जरुरतों को कैसे कैसे पूर्ण करते हैं ये एक किसान ही भलीभांति समझ सकता है जिन किसानो को करीब 8 साल से गन्ने का भुगतान आधा अधूरा मिला हो इस साल के गन्ने का भुगतान अगले साल यही होता आ रहा हैं किसानो की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है किसान कर्ज में डूबता जा रहा है ?किसान साहूकारों या धन्नासेठों के कर्ज तले दबा जा रहा है
नवीन सत्र में गन्ना पेराई चालू हैं। परंतु पिछले साल का गन्ने का भुगतान अबतक नहीं हुआ है विभिन्न सामाजिक संगठन एवं किसान संगठन मिलकर कई बार मिल प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी करते हैं लेकिन न सरकार के कानों तक जूं रेंगती है और ना ही मिल प्रशासन के कानों तक अगर किसान मिल को गन्ना न दे जबतक भुगतान न हो, इस मिल बंदी से छोटे किसानो को ज्यादा परेसानी का सामना करना पड़ता है /सभी किसानो को नुकसान होता है किसानो को गेहूं, सरसों की फ़सल बोने में देर हो रहीं होती है । इस प्रकार मजबूरी में आकर किसान अपने गन्ने को कोलहू एवं क्रेशर आदि जगह पर ओने पौने दामों पर मजबूरी में बेचता है और वह जो मूल्य भुगतान पाता है वह लागत के अनुसार आधा भी नहीं होता है। खाद और दवाओं के बढ़ते रेटों ने किसानों की कमर तोड़ दी है समय से भुगतान ना होने से बैंकों से विभिन्न प्रकार की लोन लेकर किसान खेती करता है और जब पैसा किसान नहीं चुका पाता है तो बैंकों के द्वारा विभिन्न प्रकार की समस्याओं से गुजरता है किसान की हालत ऐसी हो चुकी है की अब न निगल पा रहा है और ना उगल पा रहा है। कर्ज के बोझ तले दबे किसान बच्चों की शादी ,बच्चों की पढ़ाई, दवाई कार्यों के लिए दर-दर भटकता है और पूंजीपतियों की शरण में जाकर महंगे ब्याज पर धन उठाता है ।ताकि उनके परिवार का भरण पोषण हो सके। किसान ने जो बैंकों से खेती के लिए ऋण ले रखा है उसकी भी अदायगी समय से ना होने से महंगे ब्याजो को अदा करने के लिए मजबूर हो रहा है उत्तर प्रदेश सरकार विभिन्न प्रकार के दावे करती है कि किसानों की हालत में हमने सुधार लाने का काम किया है और उनकी आय दोगुना करने का काम किया है यह सारे वादे लखीमपुर के किसानों पर खोखले साबित होते हैं। और कोई भी राजनीतिक पार्टी न तो कोई जनप्रतिनिधि इन मुद्दों को लेकर कभी ना तो विधानसभा में सवाल उठाते हैं और न किसानों की समस्याओं पर प्रकाश डालते हैं अब धीरे-धीरे आम जनमानस का भरोसा प्रशासन की गतिविधियों से उठने लगा है और बजाज ग्रुप सरकार से बड़ा है या किसानों को समझ में अच्छे से आने लगा है जल्दी उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले को अगर संज्ञान में ना लिया तो किसान मजबूरन अपनी कृषि योग्य भूमि को बेचने के लिए मजबूर हो जाएगा क्योंकि वर्तमान परिस्थितियां किसानों के विपरीत जा रही हैं।
संपादकीय रिपोर्ट उमेश मौर्य